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कविता

दुर्घटना

लाल्टू


सूर्यास्त के सूरज और रुक गए भागते पेड़ों के पास
वह था और नहीं था.

हालाँकि उसकी शक्ल आदमी जैसी थी
गाड़ीवालों ने कहा साला साइकिल कहाँ से आ गया
कुछ लोग साइकिल के जख्मों पर पट्टियाँ लगा रहे थे
वह नहीं था

सूर्यास्त के सूरज और रुक गए भागते पेड़ों के पास
वह था और नहीं था.

जो रहता है वह नहीं होता है.

(पश्यन्ती - 2000)


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हिंदी समय में लाल्टू की रचनाएँ