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कविता

अभी परिंदों में धड़कन है

राधेश्याम बंधु


अभी परिंदों में
धड़कन है,
पेड़ हरे हैं जिंदा धरती,
मत उदास हो
छाले लखकर, ओ राही
नदियाँ कब थकतीं ?

चाँद  भले ही बहुत  दूर हो
पथ में नित चाँदनी बिछाता,
हर गतिमान चरण की खातिर
बादल खुद छाया बन जाता,
चाहे थके पर्वतारोही,
दिन की धूप नहीं है थकती ।

फिर-फिर दिन का पीपल कहता
बढ़ो हवा की लेकर हिम्मत,
बरगद  का  आशीष  सिखाता
खोना नहीं प्यार की दौलत,
पथ में रात भले घिर आए,
दिन की यात्रा कभी न रुकती ।

कितने  ही पंछी बेघर हैं
नीड़ों में बच्चे  बेहाल,
तम  से लड़ने  कौन चलेगा
रोज दिये का यही सवाल ?
पग-पग है आँधी की साजि़श,
पर मशाल की जंग न थमती।


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