अभी परिंदों में
धड़कन है,
पेड़ हरे हैं जिंदा धरती,
मत उदास हो
छाले लखकर, ओ राही
नदियाँ कब थकतीं ?
चाँद भले ही बहुत दूर हो
पथ में नित चाँदनी बिछाता,
हर गतिमान चरण की खातिर
बादल खुद छाया बन जाता,
चाहे थके पर्वतारोही,
दिन की धूप नहीं है थकती ।
फिर-फिर दिन का पीपल कहता
बढ़ो हवा की लेकर हिम्मत,
बरगद का आशीष सिखाता
खोना नहीं प्यार की दौलत,
पथ में रात भले घिर आए,
दिन की यात्रा कभी न रुकती ।
कितने ही पंछी बेघर हैं
नीड़ों में बच्चे बेहाल,
तम से लड़ने कौन चलेगा
रोज दिये का यही सवाल ?
पग-पग है आँधी की साजि़श,
पर मशाल की जंग न थमती।