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कविता

मैना री

माहेश्वर तिवारी


मैना री
पिंजरे की भाषा मत बोल

सारा आकाश यह
तुम्हारा है
फूलों की खुशबू से तर
आवाजों की कोमल टहनी
धड़कन तेरी
हरियाली है तेरा घर
मैना री
अपने को भीतर से खोल

भला नहीं लगता है
कंठ से तुम्हारे अब
सुने हुए को बस दुहराना
स्वर के गोपन रेशे-रेशे से
परिचित हो
ठीक नहीं उसे भूल जाना
मैना री
ऐसे घट जाएगा मोल


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