कविता
इतवार माहेश्वर तिवारी
सारे दिन पढ़ते अखबार बीत गया यह भी इतवार
गमलों में पड़ा नहीं पानी पढ़ी नहीं गई संत-वाणी दिन गुजरा बिल्कुल बेकार
पुछी नहीं पत्रों की गर्द खिड़की - दरवाजे बेपर्द कोशिश की है कितनी बार
मुन्ने का तुतलाता गीत अनसुना गया बिल्कुल बीत कई बार करके स्वीकार
हिंदी समय में माहेश्वर तिवारी की रचनाएँ