hindisamay head


अ+ अ-

कविता

ताप हरो

माहेश्वर तिवारी


सूरज ओ
ताप हरो

जलते हैं
खरगोशों के
नन्हे पाँव
पेड़ों की
टहनियों में
सिमटी है छाँव
बादल के
फूल झरो

दुखती है
कस्तूरी हिरनों की
आँख
हंसों की
झुलस गई है
गोरी पाँख
अब तो
ऐसा न करो


End Text   End Text    End Text