जी रहा है आदमी
प्यार ही की चाह में !
पास उसके गिर रही हैं बिजलियाँ,
घोर गह-गह कर घहरती आँधियाँ,
पर, अजब विश्वास ले
सो रहा है आदमी
कल्पना की छाँह में !
पर्वतों की सामने ऊँचाइयाँ,
खाइयों की घूमती गहराइयाँ,
पर, अजब विश्वास ले
चल रहा है आदमी
साथ पाने राह में !
बज रही हैं मौत की शहनाइयाँ,
कूकती वीरान हैं अमराइयाँ,
पर, अजब विश्वास ले
हँस रहा है आदमी
आँसुओं में, आह में !