hindisamay head


अ+ अ-

कविता

शुक्रिया मेरे शहर

देवमणि पांडेय


जिंदगी के नाम पर क्या कुछ नहीं तूने दिया
शुक्रिया मेरे शहर सौ बार तेरा शुक्रिया

क्या खबर तुझको कि हमने गाँव छोड़ा किस लिए
झूमती गाती हवा फसलों को छोड़ा किसलिए
मिल गया हमको ठिकाना पर कभी भूले नहीं
अपने घर-आँगन से रिश्ता हमने तोड़ा किसलिए
आज भी रोशन है दिल में गाँव जैसे इक दिया

खो गए फूलों के मौसम खो गईं फुलवारियाँ
खो गए ढोलक मँजीरे खो गईं पिचकारियाँ
अब कहाँ तुलसी का चौरा और वो पीपल की छाँव
खो गए दादी के किस्से खो गईं किलकारियाँ
लेके होठों से हँसी अश्कों का तोहफा दे दिया

अजनबी चेहरों का हर पल एक रेला है यहाँ
हर जगह हर वक्त जैसे एक मेला है यहाँ
हर कदम पर बेकसी लाचारगी ढोता हुआ
भीड़ में भी आदमी बेहद अकेला है यहाँ
छीनकर गंगा का जल खारा समंदर दे दिया


End Text   End Text    End Text