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कविता

खिलता हुआ कनेर

त्रिलोक सिंह ठकुरेला


बहुधा मुझसे बातें करता
खिलता हुआ कनेर,
अभ्यागत बनने वाले हैं
शुभ दिन देर सवेर,

आग उगलते दिवस जेठ के
सदा नहीं रहने,
झंझाओं के गर्म थपेड़े
सदा नहीं सहने,
आ जाएँगे दिन असाढ़ के
मन के पपीहा टेर

आशा की पुरवाई होगी
सब के आँगन में,
सुख की नव-कोंपल फूटेंगी
सब के ही मन में,
भावों के मोती बरसेंगे
लग जाएँगे ढेर।


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