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कविता

वह परवाज

अवनीश सिंह चौहान


धूप सुनहरी, माँग रहा है
रामभरोसे आज

नदी चढ़ी है
सागर गहरा
पार उसे ही करना
सोच रहा वह
नैया छोटी
और धार पर तिरना

छोटे-छोटे चप्पू मेरे
साहस-धीरज-लाज

खून-पसीना
बो-बोकर वह
फसलें नई उगाए
तोता-मैना की
बातों से
उसका मन घबराए

चिड़ियाँ चहकें डाल-डाल पर
करें पेड़ पर राज

घड़ियालों का
अपना घर है
उनको भी तो जीना
पानी तो है
सबका जीवन
जल की मीन-नगीना

पंख सभी के छुएँ शिखर को
प्रभु दे, वह परवाज


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