क्षण क्षण गति से बीत रहा है
कैसे इसमें गीत सुनाऊँ
कण कण जो अब बिसर गया है
कैसे उसमें प्रीत लगाऊँ ?
चलो खोज लें वह धारा
जो तिमिर तोड़ दे, पर्वत लाँघे
संवेदन के दीप जला कर
सबको उससे राह दिखाऊँ ?
तृषित बताए जल की महिमा
मृत्यु बताए जीवन क्या है
जो मरता है, वही अमर है
कैसे किसको मैं समझाऊँ ?
चेतन मन जो सुप्त पड़ा है
झकझोरे या कौन जगाए
आत्मलीन है व्यक्ति जगाए
स्वेद बिंदु अब किधर बहाऊँ ?