अबकी शाखों पर
बसंत तुम !
फूल नहीं रोटियाँ खिलाना।
युगों-युगों से
प्यासे होठों को
अपना मकरंद पिलाना।
धूसर मिट्टी की
महिमा पर
कालजयी कविताएँ लिखना,
राजभवन
जाने से पहले
होरी के आँगन में दिखना,
सूखी टहनी
पीले पत्तों पर मत
अपना रोब जमाना।
जंगल-खेतों और
पठारों को
मोहक हरियाली देना,
बच्चों को अनकही कहानी
फूल-तितलियों वाली देना
चिनगारी लू
लपटों वाला मौसम
अपने साथ न लाना।
सुनो दिहाड़ी
मजदूरन को
फूलों के गुलदस्ते देना
बंद गली
फिर राह न रोके
खुली सड़क चौरस्ते देना,
साँझ ढले
स्लम की देहरी पर
उम्मीदों के दिए जलाना।