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कविता

नए साल में

जयकृष्ण राय तुषार


नई सुबह ले
ओ मेरे दिनमान निकलना।
अगर राह में
मिले बनारस
खाकर मगही पान निकलना।

संगम पर
आने से पहले
मेलजोल की धारा पढ़ना।
अनगढ़ पत्थर
छेनी लेकर
अकबर, पंत, निराला गढ़ना,
हर महफिल में
मधुशाला की
लिए सुरीली तान निकलना।

सबकी किस्मत
रहे दही-गुड़
नहीं किसी की खोटी लाना,
बस्ती-गाँव
शहर के सारे
मजलूमों को रोटी लाना,
फिर-फिर
राहु ग्रहण लायेगा
साथ लिए किरपान निकलना।

बौर आम के
बैल काम के
पपिहा, मैना कोयल लाना,
सरसों खातिर
पियरी-चुनरी
गेहूँ पर हों सुग्गा-दाना,
कुशल-क्षेम हो
सबके घर में
रथ पर ले वरदान निकलना।

अबकी टेढ़ी
और बदचलन
राजनीति के ढंग बदलना,
घर के सब
खिड़की-दरवाजे
धूमिल परदे रंग बदलना,
धरती पर है
सघन कुहासा
होकर के बलवान निकलना।


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