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कविता

यह मिट्टी हिंदुस्तान की

जयकृष्ण राय तुषार


इस मिट्टी का क्या कहना
यह मिट्टी हिंदुस्तान की।
यह गुरुनानक, तुलसी की है
यह दादू, रसखान की।

इसमें पर्वतराज हिमालय,
कल-कल झरने बहते हैं,
इसमें सूफ़ी, दरवेशों के
कितने कुनबे रहते हैं,
इसकी सुबहें और संध्याएँ
हैं गीता, कुरआन की।

यहाँ कमल के फूल और
केसर खुशबू फैलाते हैं,
हम आजाद देश के पंछी
नील गगन में गाते हैं,
इसके होठों की लाली है
जैसे मगही पान की।

सत्य अहिंसा, दया, धर्म की
आभा इसमें रहती है,
यही देश है जिसमें
गंगा के संग जमुना बहती है,
अपने संग हम रक्षा करते
औरों के सम्मान की।

गांधी के दर्शन से अब भी
इसका चौड़ा सीना है,
अशफाकउल्ला और भगत सिंह
का यह खून-पसीना है,
युगों-युगों से यह मिट्टी है
त्याग और बलिदान की।


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