hindisamay head


अ+ अ-

कविता

मौत के कुएँ में

भारतेन्दु मिश्रा


दर्द को पकाता है बाँसुरी बनाता है
बस हसीन सपने को वो गले लगाता है।
मेला है दो दिन का फिर होंगे फाँके
तीनों बच्चे उसके हैं बड़े लड़ाके के
चोट जब उन्हें लगती खूब मुस्कुराता है।

जाने कब टूट जाए साँसों की डोरी
दुनिया का मेला है उसकी मजबूरी
कभी-कभी गिरता है कभी लड़खड़ाता है।
गोल गोल घूम रहा बेबस मन मारे
पूरा ही कुनबा है उसी के सहारे
मौत के कुएँ मे वो साइकल चलाता है।


End Text   End Text    End Text