भाव-विहग उड़ इधर-उधर
दुख दाने चुग आए
मन पर घनी वनस्पतियों के
जंगल उग आए
चीते जैसी घात लगाएँ
कई कुटिलताएँ
मुग्ध हिरन की आँखों का
संवेदन समझाएँ
किस-किस बियाबान के कर्जे
जंगल भुगताए
हरे ताल की छाती पर
आ बैठी जलकुंभी
और किनारे पर कटिया ले
बैठे हो तुम भी
एक-एक पीड़ा के बाँटे
कितने युग आए