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कविता

कोई पेड़ लगाता है

कमलेश द्विवेदी


कोई पेड़ लगाता है
फल दूजा कोई खाता है।
उसको है मालूम मगर
वो पेड़ लगाए जाता है।

कितने पेड़ लगाए उसने,
कितनों की तैयारी है।
सारे पेड़ों का विकास हो,
उसकी जिम्मेदारी है।
वो अपनी ये जिम्मेदारी
पूरी तरह निभाता है।

सर्दी-गर्मी या वर्षा हो,
उसको चिंता किसकी है।
कैसे पेड़ फलें-फूलें बस,
उसको चिंता इसकी है।
और इसी चिंता में डूबा
वो दिन-रात बिताता है।

उसको मोह बहुत होता है,
पेड़ों से, हर डाली से।
उसको कितना सुख मिलता है,
बगिया की रखवाली से।
कोई पेड़ कटे या सूखे
वो कितना दुख पाता है।
कोई पेड़ लगाता है
फल दूजा कोई खाता है।।


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