अब मस्तक पर
	कड़ी धूप
	चढ़ती जाती है।
	देख जेठ को
	हर गाँव की
	आँख ठगी है
	झुलसा शहर
	गली-गली में
	आग लगी है,
	पुरवा में भी
	अधिक उमस
	बढ़ती जाती है।
	झरना सूखा
	नहरों का भी
	हाल विकट है
	संकट पहुँचा
	नदी, ताल के
	बहुत निकट है,
	यह गर्मी अब
	विपद नई
	गढ़ती जाती है।
	रोज सूखकर
	उपवन की
	रोती हरियाली
	लिखती पाती
	हर गुलाब की
	कमसिन डाली,
	मौसम के सिर
	मुश्किल सौ
	मढ़ती जाती है।