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कविता

रास्ता जर्जर बहुत है

अनिल कुमार


आँख के
अंधे चले हैं
रास्ता सुंदर बनाने।

एक अवरोधक
विचारा
राह पर कब से तना था
मारकर
उसको हथौड़ा
कह दिया वह कटकना था,
धँस गए
पाताल में वे
जो सड़क पर थे पुराने।

कुछ मरे से
पेड़ हरियल
गर्मियों को जो अड़े थे
काटकर
उनको हटाया
छाँव बनकर जो खड़े थे,
जड़ से उखाड़ा
दूब को
जो लगी थी मरमराने।

मील के
कुछ पत्थरों की
नजर में थे स्वप्न कल के
अधखिले
वे मर गए सब
पाँव के नीचे कुचल के,
रास्ता
जर्जर बहुत है
हादसा कब हो न जाने।


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