hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कोहरे की मनमानी

रमेश दत्त गौतम


सूरज को
चुनने की चर्चा में
कोहरे की मनमानी ही चली।

पूरब में फैली कानाफूसी
घर लौटे नई सुबह के याचक
बातों ही बातों में ले गया
देहरी से लोकतंत्र अधिनायक
खूँटे से
बाँधी जनआशाएँ
लूटें मतपत्रों को बाहुबली।

जूझता अकेले ही जनाक्रोश
काजल की कोठरी हटाने में
व्यस्त रहे सारे ही लौहपुरुष
सोने का पानी चढ़वाने में
एक दीया बाती
की आस में
मुँह छिपाए बैठी अंधी गली।

इतना भी आसमान ताको मत
प्रश्न हैं व्यवस्थाओं के जटिल
भीतर के सूर्य को उगाओ अब
बाहर की धुंध है बड़ी कुटिल

बस ठंडे
चूल्हे में आग जले
बच्चों का पेट भरे रामकली।


End Text   End Text    End Text