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कविता

अखबार

बृजनाथ श्रीवास्तव


सुबह-सुबह ही
हाल-चाल सब
बता गया अखबार।

उजले चेहरों द्वारा
छाया का रेप हुआ
दूरभाष अनचाहे
लोगों का टेप हुआ

धर्म-जाति की
गणना में ही
मस्त हुआ दरबार।

पेंशन की दौड़ धूप में
बुधिया वृद्ध हुई
बढ़ता बोझ करो का
सरकारें गिद्ध हुईं।

अनशन करते
लोग झेलते
मँहगाई की मार।

मरा दिखाकर घर से
बेदखल हुआ होरी
लखपति के घर डाका
लिखी रपट में चोरी

जोड़-तोड़ के
करतब से कब
मुक्त हुई सरकार।


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