hindisamay head


अ+ अ-

कविता

आँखों का अभियंता

राघवेंद्र तिवारी


चढ़ते रहे पठार रात भर
दुखे बहुत टखने
किंतु नहीं पूरे हो पाए
अनासक्त सपने।

धैर्यवती अफवाह
और थी सुविधाजयी कमी
अंधकार के लोकतंत्र पर
छायी रही नमी
पढ़कर भी अखबार
खोज पाए न पते अपने।

सन्नाटा अवसादहीन
मुस्कानों में चिंता
आँसू में चुक गया कहीं
आँखों का अभियंता
धूप हुई ठंडी प्रसंगवश
बर्फ लगी तपने।

बूढ़े हुए प्रयास
और अफसोस जवान हुआ
किंतु हरी गरिमा का
अब तक फूटा न अँखुआ
हुए उसूलों के पारायण
झूठ पड़े जपने।


End Text   End Text    End Text