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कविता

कौन करेगा हल

शीलेंद्र कुमार सिंह चौहान


अव्यवस्था कुर्सी पर बैठी
           लरज रही हर पल
प्रजातंत्र के प्रश्नों को फिर
           कौन करेगा हल।

विधि विधान के अनुपालन पर
           अंधों का कब्जा
नियमों उपनियमों का जहं तहं
उड़ा रहे धज्जा,
सत्ता का सहयोग निरंतर
           उन्हें दे रहा बल।

काली करतूतों की जिनकी
           लंबी लिस्टें हैं
जिम्मेदार बजट व्यय के वे
           चट्टे बट्टे हैं,
धनाभाव पर आम प्रजा को
           रोटी मिले न जल।

बड़ों बड़ों का यूँ तो जाना
           शुरू हो गया जेल
होने भी लग गया उजागर
भ्रष्टतंत्र का खेल,
किंतु अनेक कुर्सियाँ अब भी
           रही देश को छल।


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