तुम आए तो हँसी खिड़कियाँ
दरवाजे मुस्काए
पाकर परिचित गंध द्वार ने
स्वागत गीत सुनाए।
मौन पड़ी साकलें बोलने
लगीं मनोहर बोली
बासंती परिधान पहनकर
सुरभि आँगने डोली,
बैठक ने पटखोल भवन के
मंगल कलश सजाए।
टूटा संयम दीवालों का
चौखट लगी मचलने
छत के ऊपर गोरैया के
जोड़े लगे फुदकने,
आँगन के उन्मुक्त कहकहे
खुली हवा में छाए।
चौंक पड़ा मैं हुई अचानक
यह कैसी अनहोनी
लगने लगी मुझे आखिर क्यों
तीखी धूप सलोनी,
पी अधरामृत विह्वल मन ने
गीत मिलन के गाए।