काले कौओं के दिन बहुरे
बगुलों की चाँदी ही चाँदी
बाँच रहे कुटिया की किस्मत
महलों में रहने के आदी।
कुएँ कुएँ में भाँग पड़ी है
हर चिराग के तले अँधेरा
चंदन की खुशबू के ऊपर
डाल रखा साँपों ने डेरा,
ऊँचे भवनों की चौखट पर
जोड़े हाथ खड़े फरियादी।
नागफनी पल रही घरों में,
बन बबूल फैली हरियाली
मीठे फल देने वालों की
मौसम ने दुर्गति कर डाली,
शिशुओं पर विस्फोट बमों के
इतना हुआ समय उन्मादी।
शाख-शाख पर बैठे उल्लू
राग अलाप रहे मनमाने
चिड़ीमार भोली चिड़ियों को
डाल रहे निर्भय हो दाने,
आँगन के सिक्कों की खनखन
द्वार खड़ी घायल आजादी।