राजनीति की लंका में सब
बावन गज के हैं
मेघनाद, रावण तो केवल
कहने भर के हैं।
आँख किसी की हरी, किसी की
भूरी दिखती है
हर तस्वीर समय की बनी
अधूरी दिखती है,
मुखिया सभी यहाँ पर अपने
अपने घर के हैं।
मुँह में राम, बगल में छूरी
बड़े सियासी हैं
इत्र लगा दुर्गंध छिपाने
के अभ्यासी हैं,
इनके उनके सबके हाथों
तीर जहर के हैं।
भेष बदल कर धन हरने में
सभी खिलाड़ी हैं
यह भी उनका, वह भी उनका
अजब जुगाड़ी हैं,
सबके पाँव दिखाई देते
बहके बहके हैं।