देर तक मौसम को
हम पढ़ते रहे
दिन चढ़े तक फिर
कहानी की तरह।
बात आई
दूर तक चलती गई
चौक चौराहे से
संसद तक गई
बहस में आई
बहस कर रह गई
बह गई जैसे कि
पानी की तरह।
ओस भीगी दूब से
झलकी नमी
मिल गई जैसे कि
हीरे की कनी
झिलमिला कर देर तक
झलकी मगर
खो गई फिर जल्द
फानी की तरह।
मेघ करियाए
लगे अभिराम से
और उजलाए
तुरत ही घाम से
रात मुसकाएगी
फिर से चाँदनी
किसी मीठी
लंतरानी की तरह।