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कविता

बिंब हैं ये गीत के

उदय शंकर सिंह उदय


मुंडेरों पर
जल रहे
जो हैं दिये
बिंब हैं ये गीत के
सब अनछुये।

छंद हैं ये
पंक्तियों के संग में
पोए हुए
आप अपनी गंध में
नहाए-धोए हुए
हो रहे सब ऊर्ध
मुख उज्जवल किए।

पहुँचने को
शिखर तक की
रच रहे संकल्पनाएँ
कह रहे सब उठें, जागें
और ऊपर और जाएँ
चल रहे सब
ज्योति के
ध्वज को लिए।

कह रहे सब
मानवों!
तुम भी बनाओ श्रृंखलाएँ
आप अपना दीप बनकर
ज्योति की रच लो ऋृचाएँ
सीख लो
जगमग कतारों से
कि हम कैसे जिएँ।


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