चिड़िया है
एक रोज
सपनों में आती है।
बदहवास
लगती है
छाँव नहीं पेड़ों की
बढ़ती ही
रोज गई
दुनिया है मेड़ों की
रिश्तों के
घाव खोल
रोज ही दिखाती है।
हरियाली
मन की जो
ऊसर में ठूँठ हुई
सोने से
मढ़ी आज
जंग लगी मूँठ हुई
वैभव की
क्षरित कथा,
मौन हो सुनाती है।
यात्रा
अरण्य की ही
हिस्से में आई है
आदिम
संदर्भां की
मुखरित परछाईं है
आँसू की
एक नदी,
रोज ही बहाती है।