बदलेंगे दिन बदलेंगे
आज नहीं तो कल
फिर घर वापस लौटेंगे
विदा हुए जो पल।
धूप हँसेगी आँगन में
तुलसी से बतियाएगी
मौसम भी चुगली करते
लो फिर पकड़ी जाएगी
अंबुआ की डाली पकड़े
कोयल रही सँभल।
ढोल, मँजीरे बाजेंगे
औ, मेहँदी घर आएगी
हल्दी की छापों से फिर
दीवारें शरमाएँगी
कजरी, चैती गाने को
ऋतुएँ रही मचल।
बाँध नयन का टूटेगा
नूतन संबोधन होंगे
फागुन, सावन, भँवरों के
हर पल आवेदन होंगे
अंतर के गलियारे में
होगी चहल-पहल।
पंछी बन उड़ जाने को
आतुर हैं पाँखें मन की
अब जाकर आकाश मिला
दूर उदासी क्षण-क्षण की
अँधियारे के चंगुल से
आए दिवस निकल।