खुशियाँ कौन बुहार ले गया
किसका है यह छल
काँटों वाले मिले गलीचे
ताक रहा मखमल।
धूप तप रही अंतर-अंतर
मरुथल है जीवन
तेजाबों से उबल रहे हैं
ओस नहाए क्षण
संबंधों की टहनी टूटी
रूठ गया श्रीफल।
अँधियारों ने मारी बाजी
गया उजाला हार
आँखों के दरपन में ठहरा
आँसू का संसार
सपनों के माथे पर उभरे
जाने कितने सल।
गुलमोहर औ’ नागफनी में
हर दिन तनातनी
औ’ काँटों के बीच झाँकती
कलियाँ बनी ठनी
उपवन जब तक सोचे समझे
ऋतुएँ गईं बदल।
जवा कुसुम औ’ मौलसिरी का
जादू टूट गया
नन्हीं चिड़िया उड़ना भूली
अंबर छूट गया
यक्ष प्रश्न का उत्तर देते
जीवन गया निकल।