खतरनाक है
खुले मंच से
सच का सच कहना।
भरी सभा में
अगर कहीं
झूठों का बहुमत है।
अनुकूलन है अगर भीड़ में
चाहे जो बोलो,
भ्रम का कोहरा घना बनाकर
नंगा भी हो लो
धर्म जाति या क्षेत्रवाद के
पीठ रखे हाथों
खुले सरोवर में जितना भी
चाहो विष घोलो,
आसानी है शहर जलाकर
शांति दूत बनना
अंध-भक्ति का अगर कहीं
थोड़ा भी जनमत है।
सबसे सही सुरक्षित है
कविता में बोला जाना
और कला में रेखाओं से
सच का बतियाना
किसी दूर अंदेश देश से
पीड़ा को लाकर
रेतीले सागर में बोकर
मोती ‘सिरजाना’,
अपने हिस्से का सच ढँककर
दूजे का कहना
खतरनाक है अगर
इसी में
सबकी सहमत है।