घर से कॉलिज बस में
	करती
	रोज सफर लड़की।
	पंख हौसलों में
	आँखों में
	बीज उम्मीदों के
	कदम-कदम पर
	नसीहतें
	कोड़े ताकीदों के
	सबको लेकर रखती
	सब पर
	रोज नजर लड़की।
	व्यंग्य, फब्तियाँ,
	छेड़छाड़
	जहरीली फुफकारें
	भूखी-प्यासी
	हत्यारी नजरों की
	तलवारें।
	एक साथ लाखों
	विषधर
	ढोती तन पर लड़की।
	रुकें न उसके
	कदम
	उसे मंजिल तक जाना है
	अपने होने का
	जग को
	अहसास कराना है
	इसीलिए
	सब सहकर चुप रहती
	अक्सर लड़की।