अंधों के आदेश
रात-दिन ढोता राजमहल
मिला हस्तिनापुर को
जाने किस
करनी का फल !
स्वयं कलुष के हाथों
बंधक है
राजा का मन
घुप्प अँधेरे में दिखलाए
कौन
किसे दर्पन !
शयनकक्ष से
सिंहासन तक
काजल ही काजल।
मिले शकुनि को
मान
झिड़कियाँ पाते रोज विदुर
राजसभा में
पारित होते दुर्योधन के
सुर
आँख-आँख पर
चढ़ी हुई है
स्वारथ की साँकल।
शरशय्या पर
पड़ी आस्था की
घायल साँसें
छाती में
कुरुक्षेत्र समेटे
लाशें ही लाषें
ऐसे में -
अब सर्वनाश की
काटे कौन फसल !