hindisamay head


अ+ अ-

कविता

भाई हो कहाँ

विनय मिश्र


खत न कोई बात
भाई हो कहाँ।

बहुत ऊँची है हवेली
बहुत ऊँचे लोग
है अकेलेपन का लेकिन
हर किसी को रोग
हर तरफ हैं
मौत के हालात
भाई हो कहाँ।

दिन, शहर की हलचलों में
हो गया नीलाम
हादसों में डूबती है|
जिंदगी की शाम
सिर्फ आँसू ही मिले
सौगात
भाई हो कहाँ।

भाषणों में सभ्यता की
बस दुहाई है
एक बित्ता धूप की खातिर
लड़ाई है
कर रहे अपने ही
भीतरघात
भाई हो कहाँ।


End Text   End Text    End Text