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कविता

जीने का अभ्यास
अजय पाठक


वादे खाकर भूख मिटाते
आँसू पीकर प्यास
हम करते हैं पेट काटकर
जीने का अभ्यास।

पन्ने-पन्ने फटे हुए हैं
उधड़ी जिल्द पुरानी
अपनी पुस्तक में लिक्खी हैं
दुख की राम कहानी
भूख हमारा अर्थशास्त्र है
रोटी है इतिहास।

शिल्पी, सेवक, कुली, मुकउद्दम
खूब हुए तो भृत्य,
नून-तेल के बीजगणित का
समीकरण साहित्य
चार दिवस कुछ खा लेते हैं
तीन दिवस उपवास।

प्रश्नपत्र-सी लगे जिंदगी
जिसमें कठिन सवाल
वक्त परीक्षक बड़ा कांइंयाँ
करता है पड़ताल
डाँट-डपटकर दुख-दर्दों का
रटवाता अनुप्रास।

संभला करते हैं गिरकर हम
आगे बढ़ते हैं
अपने श्रम से हम दुनिया
के सपने गढ़ते हैं
अंतरिक्ष से नहीं माँगते
मुट्टी भर आकाश।


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