अलकापुर तक जाकर लौटा
मेघदूत-सा मन।
पानी बरसा, बिजली चमकी
घटाघोर अंधियार
मेरुखंड में भोग रहा है
यक्ष विरह की मार
नाप रहा है प्राणप्रिया की
दूरी-सौ योजन।
उज्जयिनी की स्मृतियों को
पल-पल याद करे
वृक्षलता से, वल्लरियों से
वह संवाद करे
कानों में गूँजा करते हैं
पिय के मधुर कथन।
वन-वन भटके माँद-खोह में
डोल गई है काया
एक भूल पर धनकुबेर ने
कहाँ-कहाँ भटकाया ?
जीवन से हरियाली रूठी
सूखा वृंदावन।