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कविता

मन टीवी, तन डिस्को

संजीव निगम


मन टीवी, तन डिस्को,
संबंध शेयर बाजार हुए
खुली व्यवस्था, खुली अवस्था,
ग्लोबल सब व्यवहार हुए।

इंटरनेट की साइट बनी हैं, 
दादा और नाना की गोदी
इलेक्ट्रॉनिकी संदेशों ने,
संवादों की गर्मी खो दी  
खुद में मस्त एकाकीपन के,
नए उपकरण उपहार हुए।

फिल्मी पंडित बाँच रहे हैं 
संस्कृति के सारे अध्याय
आदिम युग का अंग प्रदर्शन,
आधुनिकता का हुआ पर्याय
नए मूल्य परिभाषित करते,
सीरियल ही संस्कार हुए।

भावनाएँ विज्ञापन हो गईं,
चटख रंग और ऊँची बातें
आस्थाएँ ब्रांडों में बदलीं,
फैशन शो सा जिन्हें दिखाते
मार्केटिंग की लेसर किरणों के 
अंतर्मन पर वार हुए।
 


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