दूरियाँ हमसे बहुत लिपटीं
एक अनबोला नमन होकर,
खुशबुओं-से हम सदा भटके
दो गुलाबों की छुअन होकर।
एक आँचल हाथ को छूकर
गुम गया इन बंद गलियों में,
मंत्र जैसा पढ़ गया कोई
चितवनी गीतांजलियों में,
पर्वतों के पाँव उग आए-
दीन-दुनिया का चलन होकर।
याद कर लेगा अकेलापन
उम्र से कुछ भूल हो जाना,
कसमसाहट की नदी बहना,
बिजलियों का फूल हो जाना,
रात अगली रात से बोली
सेज की सूनी शिकन होकर।
रख रही हैं जो मुझे जिंदा
आप ये कमजोरियाँ सहिए,
नाम चाहे जो मुझे दे दें,
देवता हर बार मत कहिए,
गीत है इनसान की पूजा
क्या करेंगे हम भजन होकर!
यह बड़ी नमकीन मिट्टी है,
व्यर्थ है मीठी किरन बोना,
सीख लेना सोम से अपने
शहर में ही अजनबी होना,
वह समय की प्यास तक पहुँच
बस अमृत का आचमन होकर।