पेड़ अगर तुम ना होते तो
क्या मानव जीवन होता।
बंजर - परती होती धरती
बस सूना मरुथल होता।
बादल कौन बुलाता तुम बिन
नीले-नीले अंबर में
कैसे भीग-भीग धरती का
आँचल फिर सुरभित होता
कैसे चलती मधुर बयारें
करती अंग-संग अठखेली
पाकर शीतल छाँव कहाँ फिर
जन-गण-मन प्रमुदित होता।
कहाँ पनपता जंगल जीवन
कहाँ विचरते चौपाए
नीड़ बनाते कहाँ पखेरू
कहाँ मधुर कलरव होता।
बोलो आती कहाँ पुष्टता
बिन औषध, फल-फूलों के
बीमारी और लाचारी को
मानव जन्म-जन्म ढोता।
कौन सिखाता तुम बिन बोलो
दाता बन कर झुक जाना
लुटा फूल-फल-पत्र-तना-जड़
कौन भला हर्षित होता।