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कविता

एक ही फूल की पंखुरी

राकेश खंडेलवाल


एक ही फूल की पंखुरी हम औ’ तुम
गंध तुम में वही, गंध हममें, वही
तुमने अल्फाज में जो कहा हमसुखन
बात शब्दों में हमने वही है कही

है तुम्हें जो चमन, वो हमें वाटिका
तुम इबादत करो, हम करें अर्चना
सर तुम्हारा झुके सजदा करते हुए
शीश अपना झुका हम करें वंदना
तुमने रोजे रखे, हमको उपवास हैं
तुमको महताब, हमको वही चंद्रमा
ख्वाब-सपने कहो कुछ सभी एक हैं
तुम करो आरजू, हम करें कामना

नाम से अर्थ कोई बदलता नहीं
इस धरा को जमीं तुम कहो, हम मही।


जाविये देखने के अलग हों भले
एक तस्वीर का एक ही आचरण
फर्क लिखने में चाहे जुदा ही लगे
एक अपनी जुबाँ एक ही व्याकरण
आईना तुम अगर, एक परछाईं हम
हम इबारत, लिखी जिस पे तुम वो सफा
तुम उठे हाथ मौला के दरबार में
हम लरजती लबों पे मुकद्दस दुआ
एक ही जिस्म की दो भुजा हम औ’ तुम
हर गलत प्रश्न का हम हैं उत्तर सही।


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