भीड़ का अपना गणित है
हाशिए पर जिंदगी ठहरी हुई।
ढूँढ़ने निकले जिसे हम
खो गया वह भीड़ में ऐसे
डाल सूखी हो गई
उड़ गए पंछी अचानक
नीड़ से जैसे
हथेली पर स्वप्न टूटे रह गए
याद की खाईं अधिक गहरी हुई।
रेत पर जैसे समुंदर फैल जाता है
लहर बनकर मछलियों-सा।
भटकता है जल
कौन कब चुपके से
गुम हो जाएगा
देखता गुमसुम खड़ा है सिर्फ कोलाहल
हवाओं के कान बहरे हो गए
यह सही भी, आज बहरी हो गई।