गीत तुम अब गुनगुनाओ।
धुन कोई नूतन निकालो।
कंठ में सुर-राग डालो।
रो रहे दुख से मनुज के,
पास जा कर बैठ जाओ।
आग में गम की तपोगे।
जान लो कुंदन बनोगे।।
पुष्प की मधुगंध के हित,
खार से दामन छिदाओ।
तुम स्वयं से लड़ रहे हो।
कर्म का घट भर रहे हो।
क्या भरा तुमने कल्य में,
फोड़ कर इसको दिखाओ ?