जाने हमने अपनेपन का
क्यों विनिवेष किया।
शुभ मुहूर्त के समय
लग्न लिखवाई थी हमने
समतामूलक स्वस्थ नीति
अपनाई थी हमने
फिर राहु-केतु ने कब क्यों
पासे पलट दिए
पानी जोड़ गुणा बाकी हित
सब अधिशेष किया
जबसे हमने किसी ओर की
उँगली है पकड़ी
तब से अपनी गर्दन दी है
और गई जकड़ी
अंधकार में किसी गंज के
पीछे क्या दौड़े
यानी अपना स्वत्व न जाने
कब निःशेष किया।
वेद, ऋचाएँ, गीता, मानस
गंगा जमुना का संगम
मीरा, तुलसी, सूर कबीरा
किए हुए थे हृदयंगम
जाने कब बीटल अंधड़ संग
पाप-साँग ने आकर के
था जो स्वच्छ कभी अपना
वह दूषित परिवेश किया।