अब की बार गाँव में
मुझसे बोली नहीं हवा
हाँ इस बार बनी मेरी
हमजोली नहीं हवा
मुझको प्राण वायु
देने को राजी नहीं हुई
दिल में सदा पराएपन की
चुभती रही सुई
बहुत कहा मेरे आँगन में
डोली नहीं हवा
सदा लहरकर हँसने वाली
गूँगी बनी रही
बहुत निवेदन किया
मगर वह खुलकर नहीं बही
पहली बार लगा मुझको
यह भोली नहीं हवा
दूर-दूर रहने की पीड़ा
का अहसास नहीं
लगा कि जैसे उसे
आदमी पर विश्वास नहीं
पंखुरियों से करती
मिली ठिठोली नहीं हवा।