लगा
धूप का रोग छाँह को
कैसे दिन आए ?
कंठों में
रह गए अजन्मे
छंदों के सोते
होश उड़ गए
ऐेसे जैसे
हाथों के तोते
मुश्किल में है
पेड़, पेड़ के
आदम कद साए।
खुले नयन को
बंद खिड़कियाँ
रोशनदान न भाते
काठ हो गई
काया मन की
घर आते-जाते
अर्सा हुआ
दूब पर नंगे
पाँवों को धाए।