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कविता

जादू-टोने

इसाक ‘अश्क’


कल तक थीं
जो कुंद आज वे
धारदार हो गईं हवाएँ।

सपनों के
शहतूती घेरे
           उजड़ गए ऐसे
यायावर
बंजारों के
डेरे उजड़े जैसे

उठी हाट
फूलों-रंगों की
तार-तार हो गईं लताएँ।

छंदों के
जादू-टोने
           छलकाती अमराई
एक याद बन
शेष रह गई
           शीतल जुन्हाई

रीते-रस-संदर्भ
हृदय के
आर-पार हो गईं तृषाएँ।


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