कल तक थीं
जो कुंद आज वे
धारदार हो गईं हवाएँ।
सपनों के
शहतूती घेरे
उजड़ गए ऐसे
यायावर
बंजारों के
डेरे उजड़े जैसे
उठी हाट
फूलों-रंगों की
तार-तार हो गईं लताएँ।
छंदों के
जादू-टोने
छलकाती अमराई
एक याद बन
शेष रह गई
शीतल जुन्हाई
रीते-रस-संदर्भ
हृदय के
आर-पार हो गईं तृषाएँ।