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कविता

सूर्य का बिंब लगा चढ़ने

भगवत दुबे


अरुणोदय के साथ
           सूर्य का बिंब लगा चढ़ने।

नन्हें शिशु को लिए गोद में
पूर्वांचल घाटी
स्वर्णधूलि के उबटन से
गमक उठी माटी
पंडित खगदल, मधुर कंठ से,
           मंत्र लगे पढ़ने।

पहिने हैं परिधान प्रकृति ने
सुंदर किरणीले
हैं प्रणयातुर कलियों के
अरुणाभ अधर गीले
मनमौजी भँवरे, मौसम पर
           दोष लगे मढ़ने।

बाँग लगाकर मुर्गों ने
कर दीं शंखध्वनियाँ
नदियों ने पहनी पाँवों में
जैसे पैजनियाँ
लहरों की बाँहें फैलाकर
           सिंधु लगा बढ़ने।


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