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कविता

हवा हुई ज्वरग्रस्त

भगवत दुबे


सूरज मार रहा, किरणों के
                       कस-कसकर कोड़े।

हवा हुई ज्वरग्रस्त
देह पीली वृक्षों की
उलझी प्रश्नावली
सरोवर के यक्षों की
किंतु युधिष्ठिर कृषक
                       धैर्य की वल्गा न छोड़े।

क्वांरी धान जवान
शर्म से भाल झुकाए
बिना मेघ के कौन
स्वर्ण की नथ पहनाए
पछुआ के संग गए
                       मेघ के श्याम कर्ण घोड़े।

अंधड़वाली रेत
आँख में आकर गड़ती
दूर भागती घटा
व्यंग्य के चाटे जड़ती
मौसम साहूकार
                       तकादों से पसली तोड़े।


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