हमको सीढ़ी बना
स्वार्थी, सब शिखरस्थ हुए
आँसू पीने गम खाने के
हम अभ्यस्थ हुए।
रहे बनाते सड़क
पाटकर अपनी पगडंडी
किया विपुल उत्पादन
भूखी रही किंतु हंडी
हमें, वस्तुओं के अभाव
सारे कंठस्थ हुए।
चट्टानों को तोड़े
जिसका फौलादी सीना
महँगाई ने उसका
दूभर किया यहाँ जीना
रही सुखों से दूरी
दुख सारे निकटस्थ हुए।
खुशियाँ करती रहीं
हमेशा, हमसे घरदारी
पीड़ाओं ने किंतु
निभाई सदा वफादारी
गिरते-उठते रहे
हौंसले कभी न पस्त हुए।