फूल आँख में चुभते
तब काँटे सहलाते हैं
अर्थ गीत के
उलझे शब्दों में
खो जाते हैं।
रोटी के प्रश्नों के उत्तर
कठिन कैदखाने
लिखते हैं, श्रमिकों की किस्मत
शोषक तहखाने
विध्वंसों की नए हादसे
जाँच कराते हैं।
जला बुना करते हैं
अक्सर सत्ता के गलियारे
फाँसा करते, प्रजा मछलियाँ
अपराधी मछुआरे
सांत्वनाओं के फिर, घड़याली
अश्रु बहाते हैं।
आजादी की वर्षगाँठ
आती है जाती है
देख स्वयं की सूरत
दर्पण से डर जाती है
आतंकों के सभी जगह
परचम लहराते हैं।